Saturday, February 14, 2009

तलाश

जब से भोर हुई,
कुछ तलाश रहा हूं!!!
कभी दिल टटोला,
तो कभी ऑफिस का झोला
यूँ ही बस, कितने बरसों से
मैं विलास रहा हूं
लेकिन जब से भोर हुई
कुछ तलाश रहा हूं!!!
दिन फिर से गुजर जाए,
इससे पहेले ढूंड निकालूँगा
नही तो कल जब फिर से सवेरा होगा,
कैसे उससे आँख मिला लूँगा?
साँसों के चलने पर भी तो,
रोज़ एक लाश रहा हूं!
पर
मुर्दे के फूंकने से पहेले
मैं कुछ कुछ जान पड़ा हूं!
इस लिए जब से भोर हुई
कुछ तलाश रहा हूं!!!

2 Comments:

At 2:28 AM , Blogger उन्मुक्त said...

अच्छी कविता है।

हिन्दी में और भी लिखिये। यदि हिन्दी में ही लिखने की सोचें तो अपने चिट्ठे को हिन्दी फीड एग्रगेटर के साथ पंजीकृत करा लें। इनकी सूची यहां है।

 
At 4:26 PM , Blogger Gavri said...

This is one of the best piece i have read in a long time.. Keep it up mate, and keep writing!

 

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