Monday, January 26, 2009

अपेक्षा

कश्ती कागज़ की बनाई
और जब वो नही डूबी
एक तबस्सुम आई |
पर अपेक्षा के सागर में उतारा,
तो प्रत्याशा लोच की मोच
में गोता खा गई|..हीहीही!!!
हल्का सा भी भंवर
मेरे दिल में उमडा,
क्या फायेदा!! (हनन् )
जो आशा कश्ती छोड़
खुशी खुसी साहिलों से चिपट गई

सच है !!! (वाह क्या बात है) $$
की कागज़ की कश्ती तो
मैं फिर बना लूँगा,
की इसका मोल बहुत सस्ता है ना|
पर सवाल जब मेरा दिल ही
मेरे दिल से पूछेगा,
(पागल अभी से मत रो)
तो फिर से गुनहगार तलाशना होगा |
एक अपेक्षा को दोषी ठराने के लिए
फिर किसी प्रतीक्षागत अपेक्षा
का दामन थामना होगा?

सोच ले!!! कर पायेगा?
कर पायेगा तो क्या पायेगा ?
हाहाहाहाहा !!!

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